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क्या आप जानते हैं कि पर्यावरण के लिए एक भारी संकट का कारण हमारी उपभोग की आदतें भी बन सकती हैं?
हॉ, वाकई ऐसा ही है. बढ़ती आधुनिक चकाचौंध तथा तकनीक आधारित होती जा रही जिन्दगी व जीवन शैली ने इस नए संकट को जन्म दिया है. सूचना-संचार के उपकरण, टेलीविजन, रेफ्रिजरेटर, मोबाइल फोन, आईपॉड, फैक्स मशीन, लैपटॉप और कम्प्यूटर आदि का बढ़ता प्रयोग और खराब होने के पश्चात इनके कबाड़ के कारण पूरी दुनियां में पर्यावरण प्रदूषण में भारी वृद्धि हो रही है. इलेक्ट्रॉनिक कचरा दुनियां भर में प्रतिवर्ष चार करोड़ टन की गति से बढ़ रहा है, खासतौर से भारत और चीन जैसे देशों में इस तरह का इलेक्ट्रॉनिक कचरा दस वर्षों में पांच गुना तक बढ़ जाएगा.
क्या होता है ई-कचरा
ऐसा कोई भी वैद्युत या इलेक्ट्रानिक उपकरण जो पुराना, टूटा-फूटा, खराब या बेकार होने के कारण इस्तेमाल में ना हो या फेंक दिया गया होउसे इलेक्ट्रानिक कचरा या ई-वेस्ट कहते हैं. इसमें से कुछ चीजें री-प्रोसेस की जा सकतीं हैं किन्तु अधिकांश कचरा होती हैं. दोनो ही तरह के इलेक्ट्रानिक कचरे जैविक रूप से नष्ट नहीं होने योग्य यानी नान-बायोडिग्रेडेबल होते हैं इसलिये अधिकांश विकसित देशों में इन कचरों को सीधे भूमि में दफन करना प्रतिबन्धित किया गया है.
कैसे खतरा पैदा करती हैं ऐसी अप्रयोग्य वस्तुएं
मोबाइल फोन और लैपटॉप कंप्यूटर जैसी इलैक्ट्रॉनिक वस्तुएं जब इस्तेमाल के बाद फेंक दी जाती हैं तो उनसे पर्यावरण और स्वास्थ्य के लिए संकट पैदा हो जाता है. इलेक्ट्रॉनिक वस्तुओं में इतनी तीव्रता से हो रही प्रगति और परिवर्तनों के लाभ के साथ-साथ हानि भी हैं. खासकर विकासशील देशों में इलेक्ट्रॉनिक कचरे के कारण पर्यावरण और लोगों के स्वास्थ्य के लिए भारी खतरा पैदा उत्पन्न हो चुका है.
जिस रफ्तार से टेलीविजन, मोबाइल फोन और कंप्यूटर खरीदे जाते हैं उसी गति से पुरानी इलेक्ट्रॉनिक चीज़ों को सुरक्षित तरीके से फेंकने के प्रयास नहीं किए जाते हैं. इसके विपरीत विकसित देशों में इन वस्तुओं को प्रयोग के बाद खराब होने पर रीसाइकलिंग कर दी जाती है.
इलेक्ट्रॉनिक वस्तुओं में धातु और कुछ इस तरह के तत्व होते हैं जो पर्यावरण और स्वास्थ्य के लिए बेहद खतरनाक होते हैं इसलिए इन वस्तुओं को सुरक्षित तरीके से फेंकने की व्यवस्था अर्थात रीसाइकलिंग एक जटिल और महंगी प्रक्रिया है. लेकिन बहुत से देशों में इलेक्ट्रॉनिक वस्तुओं को यूज के बाद उनसे होने वाले हानि की चिंता किए बिना ही सामान्य कचरे में ही डाल दिया जाता है. इलेक्ट्रॉनिक कचरे से इस तरह की किरणें निकलती हैं जो वायु में मिलकर पर्यावरण को नुकसान पहुँचाती हैं.
क्या करना चाहिए
ऐसे खतरे से निपटने के लिए नए नियम और कानून बनाए जाने चाहिए जो यह सुनिश्चित करें कि इस तरह का इलेक्ट्रॉनिक कचरा फेंकने के लिए कठोर मानदंड अपनाए जाएं. सरकारी और गैर सरकारी संस्थाओं तथा मीडिया को स्वयं आगे आकर जन-सामान्य को इस दिशा में जागरुक करने की जरूरत है ताकि विदेशों से आने वाले कबाड़ योग्य वस्तुओं की सही ढंग से स्क्रैपिंग करने के लिए सरकारों को विवश किया जा सके. इतना ही नहीं इलेक्ट्रॉनिक कचरा निपटान को एक निश्चित दिशा देने की जरूरत है ताकि समय रहते पर्यावरण संकट की विभीषिका से बचा जा सके.
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