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फेसबुक या ट्विटर पर धमकी देने से पहले दस बार सोचें !!

तकनीक-ए- जहॉ
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आधुनिक जनजीवन में फेसबुक या ट्विटरजैसी सोशल नेटवर्किंग साइट्स के इस्तेमाल काफी बढ़ चुके हैं और अब हालात ऐसे हैं कि बहुत कम ही ऐसे व्यक्ति हैं जिनका अकाउंट किसी भी सोशल नेटवर्किंग साइट्स पर नहीं हो. किंतु सोशल नेटवर्किंग साइटों से जुड़ने के कारण बहुत सी समस्याएं भी उत्पन्न होने लगीं हैं जिनमें से एक समस्या का नाम साइबर बुलिंग है. आपको पिछले साल पंजाब में हुई एक घटना तो याद होगी जब एक 21 साल की लड़की ने अपने आपको कमरे में बंद कर स्वयं के साथ मार-पिटाई की और फिर पंखे से फांसी लगाकर आत्महत्या कर ली. उस लड़की के ऐसा करने के पीछे का कारण उसके प्रेमी का उसे फेसबुक और ट्विटर पर धमकी भरे एसएमएस भेजना था. इसी अपराध को साइबर बुलिंग कहा जाता है. सरल भाषा में यदि कोई आपको फेसबुक या ट्विटरया फिर किसी भी सोशल नेटवर्किंग साइट्स के जरिए परेशान कर रहा है तो आप उसके खिलाफ साइबर बुलिंग के रूप में शिकायत दर्ज करवा सकते है.


आपको यह सर्वे जानकर हैरानी होगी कि भारत साइबर बुलिंग के मामलों में विश्व में तीसरे नंबर पर है. न्यू ग्लोबल यूथ ऑनलाइन बिहेवियर सर्वेकी रिर्पोट का कहना है कि भारत में 53 फीसदी बच्चे ऑनलाइन बुलिंग का शिकार होते हैं.


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साइबर बुलिंग कानून क्या कहता है ?

सूचना प्रौद्योगिकी कानून की धारा 66 ए के अंतर्गत साइबर बुलिंग के अपराध मामलों को रखा गया है.

  • अगर आप अपने मोबाइल या कम्प्यूटर के जरिए कोई भी आपत्तिजनक संदेश भेजते या प्रकाशित करते हैं तो ये दंडनीय अपराध है और यदि आपने किसी अन्य व्यक्ति को धमकी भरे संदेश भेजे हैं तो वो भी दंडनीय अपराध है.

  • ऐसा करने पर पांच लाख रुपए का जुर्माना हो सकता है या फिर तीन साल की जेल की सजा. कुछ स्थितियों में यह दोनों ही सजाएं एक साथ दी जा सकती हैं या फिर इस अपराध में जमानत भी दी जा सकती है.

  • साल 2000 में जब सूचना प्रौद्योगिकी कानून पारित किया गया था तब उस समय सोशल नेटवर्किंग साइटों का चलन नहीं था. बहुत कम मात्रा में ही ऐसे लोग होते थे जो सोशल नेटवर्किंग साइटों का इस्तेमाल करते थे. पर जब ऐसा समय आया है कि करोड़ों लोग सोशल नेटवर्किंग साइटों से जुड़ने लगे तो साल 2008 में सूचना प्रौद्योगिकी कानून में संशोधन किया गया जिसके अंतर्गत यदि आप किसी को कोई आपत्तिजनक संदेश भेजते हैं और उस संदेश से किसी को मानसिक स्तर पर आघात पहुंचता है तो वो भी दंडनीय अपराध है.


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साइबर बुलिंग और सोशल नेटवर्किंग साइट्स

साइबर बुलिंग के मामले में सबसे जरूरी यह है कि जब आप किसी व्यक्ति के प्रति साइबर बुलिंग का केस दर्ज कराते हैं तो आपके पास उस एसएमएस का इलेक्ट्रॉनिक सबूत होना चाहिए. वैसे इलेक्ट्रॉनिक सबूत होना जरूरी नहीं है पर अदालत में पेश किया गया इलेक्ट्रॉनिक सबूत काफी कारगर साबित होता है और अदालत भी इसे साइबर बुलिंग के मामले में सबूत के रूप में स्वीकार करती है. सोशल नेटवर्किंग कंपनियों की जिम्मेदारी होती है कि वो साइबर बुलिंगके मामले मेंअदालत या पुलिस के सबूत मांगने पर उनकी मदद करें और ऐसा न करने पर अदालत कंपनी के खिलाफ मुकदमा दर्ज कर सकती है.

साइबर बुलिंग से बचाव के लिएपहला कदम क्या हो ?

कानूनी विशेषज्ञों का मानना है कि अगर आप कभी साइबर बुलिंग के शिकार हों तो सबसे पहले सोशल नेटवर्किंग कंपनी को सूचित करें और फिर कानूनी सहारा लें लेकिन इससे घबराकर कभी भी कोई गलत कदम उठाने की जरूरत नहीं होती है.

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