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40 मिनट तक वह मौत की गोद में सोता रहा, उसके परिवार को कह दिया गया कि अब वो कभी लौट कर नहीं आएगा लेकिन अचानक कुछ देर बाद उसके शरीर में सिहरन सी महसूस होने लगी. उसकी धड़कनों की गति बढ़ने लगी और फिर वो चमत्कार हुआ जिसकी उम्मीद क्या किसी ने कभी इस बारे में सोचा तक नहीं था. विक्टोरिया (ऑस्ट्रेलिया) का रहने वाला 39 वर्षीय कॉलिन फीडलर उन तीन सौभाग्यशाली लोगों में से है जिन्होंने मौत को दगा देकर अपना जीवन वापस पाया.
थमने के बाद फिर से धड़केगा आपका दिल
अरे नहीं नहीं इस घटना का संबंध किसी पारलौकिक चमत्कार से नहीं बल्कि सीधे तौर पर सिर्फ और सिर्फ विज्ञान से है क्योंकि ऑस्ट्रेलिया में विश्व की पहली पुनर्जीवित करने वाली तकनीक विकसित की गई है जिसकी वजह से इंसानी मस्तिष्क को फिर से एक बार काम करने के लिए मजबूर किया जा सकता है.
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ऑस्ट्रेलिया के एल्फ्रेड अस्पताल में आपातकाल विभाग के अंदर दो ऐसी तकनीकों का प्रयोग किया जाने लगा है जो इंसान को मौत के मुंह से छीन लाने में बहुत हद तक सफल साबित हो सकती हैं. उल्लेखनीय है कि एल्फ्रेड अस्पताल द्वारा यांत्रिक CPR मशीन, जो सीने में दबाव को स्थिर रखती है, और पोर्टेबल हार्ट-लंग मशीन, जो मरीज के जैविक अंगों और मस्तिष्क में ऑक्सीजन और रक्त की आपूर्ति करती है, का परीक्षण चल रहा है.
पिछले वर्ष यानि वर्ष 2012 में कॉलिन फीडलर को हार्ट अटैक आया था जिसके बाद 40-60 मिनट उन्होंने मौत के आगोश में बिताए. वह पहले ऐसे व्यक्ति हैं जिनके शरीर पर इन मशीनों का परीक्षण किया गया और कॉलिन के बाद 7 अन्य लोगों पर इस मशीन का परीक्षण किया जा चुका है जिसमें से 3 पर ही सफलता मिली है.
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अभी तक यही देखा जाता है कि अगर सौभाग्यवश कोई व्यक्ति मौत के मुंह से वापस आ भी जाता है तो उसका मस्तिष्क काम नहीं कर पाता जिसकी वजह से या तो वह कोमा में चला जाता है या फिर पैरालिसिस का शिकार हो जाता है लेकिन इन मशीनों के सफल परीक्षण के बाद अगर हार्ट अटैक की वजह से किसी व्यक्ति का ब्रेन डेड हो जाता है तो मशीनों की सहायता से डॉक्टरों को इतना समय मिल जाता है कि वह हृदयाघात के कारणों का पता लगा लें. जड़ तक पहुंचने के बाद डॉक्टरों उस वजह को दुरुस्त कर देते हैं और जिसके परिणामस्वरूप व्यक्ति को नया जीवन मिल जाता है.
फिलहाल यह दो मशीनें सिर्फ ऑस्ट्रेलिया के एल्फ्रेड अस्पताल में ही हैं लेकिन वरिष्ठ इंटेंसिव केयर फिजिशियन स्टीफन बर्नॉर्ड का कहना है कि दो साल के सफल परीक्षण के बाद वह काफी उत्साहित हैं और अब इन मशीनों का प्रयोग मेलबोर्न के सभी इलाकों में किए जाने की योजना है.
प्रोफेसर बर्नॉर्ड के अनुसार इन मशीनों का प्रयोग करने के लिए तीन फिजिशियन की जरूरत होती है और पूरे विक्टोरिया में ऐसी तकनीक किसी दूसरे अस्पताल में नहीं है. उनका कहना है कि जिस कंपनी से यह CPR मशीनें ली हैं वह और ऐसी ही मशीनें देने के लिए तैयार है और उसके साथ डील की जा सकती है.
जाहिर तौर पर यह नई तकनीक मानव जीवन को एक नया आयाम देने वाली है. इसमें कोई दो राय नहीं कि एक मरे हुए व्यक्ति को उसकी सांसें लौटा देने वाली यह तकनीक वैश्विक स्तर पर लोकप्रिय हो जाएगी. लेकिन भारत में यह मशीनें कब पहुंचेंगी इसके लिए थोड़ा इंतजार करना पड़ सकता है.
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